
मैं राही अपने मंजिल का ,
मंजिल को पाने हूँ निकला ।
राहों मैं बाधा आती है ,
तूफानों सा अंगारों सा ।
हर डगर नई , हर शहर नई ,
हर सुबह नई हर शाम नई ।
हर पल ऐसा लगता है कि ,
वो आई बस वो आई ।
मंजिल को पाने कि खातिर राही को बढ़ते जाना है ,
मन मैं विश्वास बना है ये मंजिल तो एक दिन आनी है ।
( मेरी पहली कविता )
मंजिल को पाने हूँ निकला ।
राहों मैं बाधा आती है ,
तूफानों सा अंगारों सा ।
हर डगर नई , हर शहर नई ,
हर सुबह नई हर शाम नई ।
हर पल ऐसा लगता है कि ,
वो आई बस वो आई ।
मंजिल को पाने कि खातिर राही को बढ़ते जाना है ,
मन मैं विश्वास बना है ये मंजिल तो एक दिन आनी है ।
( मेरी पहली कविता )