मैं राही अपने मंजिल का...


मैं राही अपने मंजिल का ,
मंजिल को पाने हूँ निकला ।

राहों मैं बाधा आती है ,
तूफानों सा अंगारों सा ।

हर डगर नई , हर शहर नई ,
हर सुबह नई हर शाम नई ।
हर पल ऐसा लगता है कि ,
वो आई बस वो आई ।

मंजिल को पाने कि खातिर राही को बढ़ते जाना है ,
मन मैं विश्वास बना है ये मंजिल तो एक दिन आनी है ।

( मेरी पहली कविता )

मेरा भारत देश महान


जहाँ उदय हो शंख नाद से ,
जहाँ हो बहती शीतल नदियाँ ।
जहाँ हो धरती पर हरियाली ,
जहाँ हो अम्बर नीला नीला ।
वो मेरा देश महान है ।

जहाँ कि हर बाला हो देवी , बच्चा बच्चा राम है ,
जहाँ देश पे मरने को हर जीवन तैयार है ।
जहाँ का जीवन रंग रंगीला , हर पल एक त्यौहार है ,
जहाँ भिन्न हो भेष और भाषा फिर भी सभी समान है ।

वो मेरा देश महान है।

सन्यास

लोग जीवन से हार कर थक कर सन्यास लेने कि बात करते है , परंतु जब भी सन्यास सच्चा होता है , जीवन के थकान से नही जीवन के उल्लाश से पैदा होता है ।
जीवन के तरंगों से , पक्षियों के गीतों से ,वृक्षों कि हरियाली से , फूलों के रंग से गंध से । तारों के चमक से , जीवन के अनंत अनंत अनुभवों से पकता है । सन्यास जीवन के पर ले जाता है ,जीवन के विपरीत नही ।

महत्वाकांक्षा

महत्वाकांक्षा के आधार पर खरा जगत कभी अहिंसक नही हो सकता , फिर वो महत्वाकांक्षा संसार कि हो या संसार के पर की ।
जहाँ कहीँ भी महत्वाकांक्षा है वहां हिंसा है, वस्तुतः महत्वाकांक्षा ही हिंसा है ।

सच

साथ चलते रहने से कारवां बन जता है , सच बोलते रहने से आदमी खुदा बन जता है ।