
मैं राही अपने मंजिल का ,
मंजिल को पाने हूँ निकला ।
राहों मैं बाधा आती है ,
तूफानों सा अंगारों सा ।
हर डगर नई , हर शहर नई ,
हर सुबह नई हर शाम नई ।
हर पल ऐसा लगता है कि ,
वो आई बस वो आई ।
मंजिल को पाने कि खातिर राही को बढ़ते जाना है ,
मन मैं विश्वास बना है ये मंजिल तो एक दिन आनी है ।
( मेरी पहली कविता )
मंजिल को पाने हूँ निकला ।
राहों मैं बाधा आती है ,
तूफानों सा अंगारों सा ।
हर डगर नई , हर शहर नई ,
हर सुबह नई हर शाम नई ।
हर पल ऐसा लगता है कि ,
वो आई बस वो आई ।
मंजिल को पाने कि खातिर राही को बढ़ते जाना है ,
मन मैं विश्वास बना है ये मंजिल तो एक दिन आनी है ।
( मेरी पहली कविता )
1 comment:
Pahle jarur raah banana aasan nahi hota lekin ek baar raah par chal do to phir manjil dikhne jarur lagti hai, aur jab manjil mil jaati hai phir man ramne lagta hai is sansar mein..
bahut achhi lagi aapki pahli rachna
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